
न मिला आवास , न मिल रई पेंशन..साहब , बहुत रहती टेंशन
पॉलीथिन के नीचे सिर छिपाए परिवारों को हो आवास का इंतजार
ग्राम पंचायत डुंगरिया के ग्रामीण सुना रहे अपनी आपबीती
पाली । बिरधा ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत डुंगरिया में आज भी लोग शाषन की महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ पाने के लिए इन्तजार में बने है , जिनमें कई सहरिया आदिवासी परिवार आज भी मुफलिसी की जिंदगी के बीच अपना गुजर बसर कर रहे है । इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहें कि आज भी इनकी स्थिति बद से बदतर बनी है । योजनाओं की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आज तक न तो यहां के जनप्रतिनिधियों ने कोई अपनी रुचि दिखायी और न ही यहां आने वाले अधिकारियो ने इनकी कभी सुध ली ।
तहसील पाली बिरधा ब्लॉक अंतर्गत ग्राम डुंगरिया में शाषन की योजनाओं का तो लाभ पहुंच रहा है लेकिन उनका ठीक तरीके से क्रियान्वन नहीं हो पा रहा है । जिन परिवारों को योजनाओं का लाभ देने में बड़ी प्राथमिकता मिलनी तो वह आज भी हंसिए पर बने है और मुफलिसी का जीवन व्यतीत करने को मजबूर है । अपने जीवन के करीब 60 से ज्यादा बसंत पार कर चुकी पठराई वारी सहरिया महिला के कंधों से खुद के शरीर का बोझ नहीं उठाया जा रहा लेकिन जैसे – तैसे दो नाबालिक नातिनों की जिम्मेदारी लिए संघर्ष कर रही है । पठराई बाई बताती है है कि बीते आठ वर्ष पूर्व मेरी नातिन रानी और शिवानी की मां का देहांत हो जाता है , बच्चों की जिम्मेदारी उठा रही थी कि बीते एक वर्ष पूर्व बीमारी के चलते इनके सिर से पिता का साया भी उठ जाता है । बड़ी नातिन मुंह नहीं बोल पाती छोटी नातिन कक्षा छह में पढ़ती है , परिवार की जिम्मेदारी उठाने इन्ही बच्चों के साथ कभी जंगल से सूखी लकड़ी बीन लाते तो कभी बेल बीन लाते है , जिनसे तीनो का गुजर बसर चल रहा है । गांव में आवास बन रए प्रधान से कहते है हमाओ आवास बनवा दो लेकिन आज तक नहीं बना । सिर पर कच्चा आशियाना है बरसात में इसके नीचे गुजरबसर मजबूरी में करते है । आगे बताती है कि साठ साल से ज्यादा हो गयी उम्र पेंशन नहीं मिल रही , पेंशन मिल रई होती तो तनक लाभ हो जातो । राशन कबहुँ मिलत तो कभहुँ नहीं ।
गांव की 38 वर्षीय महिला मिथलेश सहरिया बताती है कि आवास के इन्तजार में सालों गुजर गईं जब देखा कि इन्तजार बढ़ता जा रहा है तो एक साहूकार को खेत गिरवी रख थोड़ा सा घर बना लिया है ,पॉलीथिन से उसकी छत बनाकर तैयार कर ली है । जंगल के सहारे भरण पोषण करते है । पचास से ज्यादा उम्र की चंद्ररानी बताती है कि मोदी जी का गैस सिलेंडर मिला , गांव में नल आ गए लेकिन अभी बहुत से लोगों के सिर पर पक्की छत नहीं है । मिट्टी के घरौंदों में पॉलीथिन के नीचे सिर छिपाने को मजबूर है । बरसात में कीड़े- मकोड़ों का बड़ा भय बना रहता है , आवास के लिए कई बार आवेदन कर चुके है लेकिन आज तक आवास नहीं मिले । प्रधान नयीं सुनत तो अधिकारी आवे घर घर देखवे सब मालूम चल जे किन हालात में हम गरीब आदमी जीवन जीवे मजबूर है ।
गांव में ऐसे और भी लोगों ने बताया कि रोजगार के अभाव के चलते कई परिवार गांव छोड़कर मजदूरी करने बाहर चले गए , जो है उनमें अधिकांश के हालात ठीक नहीं है ।मनरेगा योजना में कैसे काम चलत सब जानत है , मनरेगा के अंतर्गत बनाये गए अमृत मान सरोवर तालाब देख लो , गहरीकरण के नाम में एक जगह जेसीबी से खुदाई हो गयी ।
ग्रामीणों को मलाल है देश में इतनी अच्छी योजनाएं गांव , गरीब के लिए चल रही है लेकिन अंतिम छोर तक , जरूरी पात्र लोगों को उसका लाभ जल्द नहीं मिल पा रहा है ।